धुँधली मेरी आँखें हो गई,
बेटा,क्या तुम मेरा चश्मा ला दोगे।
मेरे बचपन के दिन फिर आ गए,
बेटा, क्या तुम मुझे साहारा दोगे।

तुझे याद नहीं, पर वो मैं ही था,
नन्ही उंगलिओ को थामकर जिसने
तुम्हें पहला कदम लेना सिखाया था,
तुम्हें याद नहीं पर वो मैं ही था
तुम्हारे दगमगाते कदम को जिसने सहारा दिया था।

अपनी मीठी किलकारियों से,
तुने हमे रात भर जगाया
फिर क्यों मेरे बुढ़ापे मे,
तु मेरा हाथ थामने से मुकर गया।

तेरी ख्वाहिशों को पुरा करने में,
बड़ा आनंद आता था
फिर आज तू क्यों मुकर जाता
मेरी सेवा करने से।

चेहरे पर झूरियां जरुर आ गई,
पर उस पुरानी कूर्सी ने तरह बेकार नहीं मैं।
शरीर से ताकत जरुर चली गई,
पर लाचार और बेबस नहीं मैं।

जीवन के ईस नए पड़ाव पर उम्मीद लिए चल रहा हूँ,मैं।
आशाओं से बंधें डोर के सहारे चल रहाँ हूँ,मैं।

©copyright 2016
(all rights reserved )