कैसे न थकते मेरे होंठ ?
मुस्कराहटों में दबे ईन आँसुऔं को जो छिपाते थे।
क्यों न आँखें मेरी सबसे नजर छिपाते ?
इन्हें अकेले मे आँसुओं की बरसात जो बरसाने थे।
कैसे पहुँचते होंठो तक वे मुस्कराहट ?
शुरूआत जिनके आँखों से हुए थे।
कैसे हम सुनते अपने दिल की आहट ?
जब जमानें की नजर हम पर टिके थे।
क्यों न हम जीते दिखावे की जिंदगी ?
जमानें में खुद को शामिल जो करना था।
कैसे न छिनती हमसे हमारी आजादी ?
हमनें खुद की आजादी को मौक़ा ही कहाँ दिया था।

(copyright© priyadarshini)
(all rights reserved)